हिन्दी कहानी
भाषा का अनुपम उदाहरण कह सकते हैं। हिन्दी उर्दू शब्दों की यह मिश्रित भाषा
वर्तमान में भी उतनी ग्राह्य और भाव बोधक है जितनी इनके लिखते समय में थी ।
कहानिकारों ने हिन्दी कहानी कोष की श्रीवृद्धि की, इसलिए हिन्दी कहानी के विकास के केन्द्र में
लालची नागदेव और मेंढकों का राजा : पंचतंत्र की कहानी
कष्टों के दो ही कारण हैं- एक धार्मिक अंधविश्वास और सामाजिक रूढ़ीवादिता और दूसरा
लिखते समय कहानीकार यह ध्यान रखता है कि जिस कहानी की वह रचना कर रहा है वह
से अनके शिक्षाएँ तथा उद्धेश्य प्राप्त होते थे। इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता
केन्द्रीय महत्व का स्वीकारा। मुशी प्रेमचन्द ने अपने जीवन काल में तीन सौ
में ही जयशंकर प्रसाद ने हिन्दी में कई कहानियाँ लिखी लेकिन इनकी कहानियाँ
ताई, ‘रक्षावधन', 'माता का हृदय' कृतज्ञता आदि
पश्चात् नये युग में हिन्दी कहानी की दो प्रमुख शाखाएँ उभरकर आयी। इनमें एक शाखा
युग की आरम्भिक कहानियाँ प्रायः आदर्श-वादी होती थी जिनमें भावुकता के साथ किसी
वह कौन-सा मनुष्य है जिसने महा-प्रतापी राजा भोज महाराज का नाम न सुना हो! उसकी महिमा और कीर्ति तो सारे जगत् में व्याप रही है, और बड़े-बड़े महिपाल उसका नाम सुनते ही काँप उठते थे और बड़े-बड़े भूपति उसके पाँव पर अपना सिर नवाते। सेना उसकी समुद्र की तरंगों राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद
माँ को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे सुदर्शन